रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण व्लादिमीर पुतिन बुरे फंसे हुए हैं। उन्हें न सिर्फ जानमाल का नुकसान उठाना पड़ रहा है, बल्कि इसकी वैश्विक कीमत भी चुकानी पड़ रही है। कल तक जो रूस के सबसे बड़े सहयोगी थे, वे आज पीछा छुड़ाकर दूसरा रास्ता अपना रहे हैं। इससे पुतिन की विदेश नीति पर सवालिया निशान लग रहा है।

मॉस्को: रूस के लिए यूक्रेन युद्ध किसी आफत से कम नहीं है। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने जिस सोच के साथ इस युद्ध को शुरू किया वो तो पूरा नहीं हुआ। उसकी जगह रूस को अब तक इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। न सिर्फ रूस को पैसों और सैनिकों का नुकसान हुआ, बल्कि वैश्विक स्तर पर साख भी कमजोर हुई है। इतना ही नहीं, इस युद्ध के शुरू होने के बाद से रूस ने बड़े पैमाने पर अपने दोस्तों को भी खोया है, जो कल तक उसके कट्टर समर्थक हुआ करते थे। यह कुछ ऐसा ही है, जैसा अमेरिका को अफगानिस्तान युद्ध के दौरान अनुभव करना पड़ा था। उस युद्ध को भी अमेरिका जीत नहीं सका, अलबत्ता उसे भारी नुकसान उठाकर अचानक सबकुछ छोड़कर भागना पड़ा था।
रूस एक महाशक्ति है, जो अमेरिका के विरोधी गुट का नेतृत्व करता है। हालांकि, यूक्रेन युद्ध ने रूस की सैन्य क्षमताओं पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। पुतिन एक ऐसे ताकतवर शख्स के रूप में सामने आए हैं, जो खुद की सुरक्षा की गारंटी नहीं दे सकता है। ऐसे में वह अपने सहयोगियों की सुरक्षा भला कैसे करेंगे। रूस ने इस युद्ध के कारण उन देशों का साथ भी छोड़ दिया, जिसने हर मुश्किल समय पर उसका झंडा ढोया और साथ में जीने-मरने की कसमें खाईं थी। यही कारण है कि मध्य पूर्व से लेकर काकेशस, स्कैंडिनेविया से लेकर मध्य एशिया तक कई देश रूस का साथ छोड़कर खुद के लिए नया ठिकाना तलाश रहे हैं। जानें ऐसे ही देशों के नाम।
सीरिया कभी पुतिन की विदेश नीति में सबसे बड़ी उपलब्धि थी। 2015 में, रूस के हस्तक्षेप ने राष्ट्रपति बशर अल-असद के लिए हालात बदल दिए थे। उस समय वह सीरिया में ISIS, तुर्की समर्थित विद्रोहियों और अमेरिका समर्थित बलों सहित दुश्मनों के गठबंधन का सामना कर रहे थे। इस लड़ाई में रूस का साथ ईरान ने भी दिया। ईरान की जमीनी मदद ने रूसी हवाई हमलों को मजबूती प्रदान की। इससे सीरिया में बशर-अल-असद की पकड़ बढ़ गई। रूस ने इसका फायदा भी उठाया और सीरिया के टार्टस में नौसैनिक अड्डा और हमीमिम में एयरबेस की स्थापना कर भूमध्य सागर के पास अपनी उपस्थिति को मजबूत किया।
हालांकि, 2024 में रूस के यूक्रेन युद्ध में उलझे रहने के कारण बशर-अल-असद को भारी नुकसान उठाना पड़ा। यहां विद्रोही संगठन हयात तहरीर अल-शाम (HTS) के नेतृत्व में और तुर्की समर्थिक सीरियाई विद्रोहियों ने अचानक असद सरकार के खिलाफ विद्रोह कर दिया। इससे असद का शासन ढह गया और उन्हें मजबूरी में अपना देश छोड़कर रूस भागना पड़ा। माना जाता है कि रूस के यूक्रेन युद्ध में उलझे रहने और संसाधनों की कमी के कारण सीरिया में असद को सत्ता छोड़कर भागना पड़ा। अगर रूस ने असद का साथ दिया होता तो आज सीरिया की स्थिति कुछ और होती।
रूस एक महाशक्ति है, जो अमेरिका के विरोधी गुट का नेतृत्व करता है। हालांकि, यूक्रेन युद्ध ने रूस की सैन्य क्षमताओं पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। पुतिन एक ऐसे ताकतवर शख्स के रूप में सामने आए हैं, जो खुद की सुरक्षा की गारंटी नहीं दे सकता है। ऐसे में वह अपने सहयोगियों की सुरक्षा भला कैसे करेंगे। रूस ने इस युद्ध के कारण उन देशों का साथ भी छोड़ दिया, जिसने हर मुश्किल समय पर उसका झंडा ढोया और साथ में जीने-मरने की कसमें खाईं थी। यही कारण है कि मध्य पूर्व से लेकर काकेशस, स्कैंडिनेविया से लेकर मध्य एशिया तक कई देश रूस का साथ छोड़कर खुद के लिए नया ठिकाना तलाश रहे हैं। जानें ऐसे ही देशों के नाम।
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सीरिया
सीरिया कभी पुतिन की विदेश नीति में सबसे बड़ी उपलब्धि थी। 2015 में, रूस के हस्तक्षेप ने राष्ट्रपति बशर अल-असद के लिए हालात बदल दिए थे। उस समय वह सीरिया में ISIS, तुर्की समर्थित विद्रोहियों और अमेरिका समर्थित बलों सहित दुश्मनों के गठबंधन का सामना कर रहे थे। इस लड़ाई में रूस का साथ ईरान ने भी दिया। ईरान की जमीनी मदद ने रूसी हवाई हमलों को मजबूती प्रदान की। इससे सीरिया में बशर-अल-असद की पकड़ बढ़ गई। रूस ने इसका फायदा भी उठाया और सीरिया के टार्टस में नौसैनिक अड्डा और हमीमिम में एयरबेस की स्थापना कर भूमध्य सागर के पास अपनी उपस्थिति को मजबूत किया।
हालांकि, 2024 में रूस के यूक्रेन युद्ध में उलझे रहने के कारण बशर-अल-असद को भारी नुकसान उठाना पड़ा। यहां विद्रोही संगठन हयात तहरीर अल-शाम (HTS) के नेतृत्व में और तुर्की समर्थिक सीरियाई विद्रोहियों ने अचानक असद सरकार के खिलाफ विद्रोह कर दिया। इससे असद का शासन ढह गया और उन्हें मजबूरी में अपना देश छोड़कर रूस भागना पड़ा। माना जाता है कि रूस के यूक्रेन युद्ध में उलझे रहने और संसाधनों की कमी के कारण सीरिया में असद को सत्ता छोड़कर भागना पड़ा। अगर रूस ने असद का साथ दिया होता तो आज सीरिया की स्थिति कुछ और होती।
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